अभुक्तायां यस्यां /abhuktayam yasyam shloka vairagya
अभुक्तायां यस्यां क्षणमपि न यातं नृपशत्रै
र्भुवस्तस्या लाभे क इव बहुमानः क्षितिभुजाम्।
तदंशस्याष्यंशे तदवयवलेशेऽपि पतयो
विषादे कर्त्तव्ये विदधति जडाः प्रत्युत मुदम्॥२४॥
जिस पृथ्वी के स्वामित्व को पाकर उसका पूर्ण भोग भोगे बिना ही हमारे पूर्वजों को उसे छोड़ देना पड़ा उसी के स्वामित्व को पाकर आज के राजाओं को अभिमान कैसा? इतना ही क्यों, अब तो पृथ्वी के अंश को प्राप्त कर मनुष्य अपने को उसका पति मानने का दावा रखते हैं। बड़ा आश्चर्य है कि मूर्ख लोग जहाँ खेद करना चाहिए वहाँ भी आनन्द ही माना करते हैं।