F आदित्यस्य गतागतै /adityasya gata gatai vairagya shloka - bhagwat kathanak
आदित्यस्य गतागतै /adityasya gata gatai vairagya shloka

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आदित्यस्य गतागतै /adityasya gata gatai vairagya shloka

आदित्यस्य गतागतै /adityasya gata gatai vairagya shloka

 आदित्यस्य गतागतै /adityasya gata gatai vairagya shloka

आदित्यस्य गतागतै /adityasya gata gatai vairagya shloka

आदित्यस्य गतागतैरहरहः संक्षीयते जीवितं

व्यापारैर्बहुकार्यभारगुरुभिः कालो न विज्ञायते।

दृष्ट्वा जन्मजराविपत्ति मरणं त्रासश्च नोपत्पद्यते

पीत्वा मोहमयीं प्रमादमदिरामुन्मत्तभूतं जगत्॥७॥

प्रतिदिन सूर्य के उदय और अस्त से आयु क्षीण होती जाती है, सांसारिक प्रपंचों के चक्कर में ही सारा समय बीतता जा रहा है, उत्पत्ति, बुढ़ापा और मरण को देखकर भी इससे किसी को भय नहीं होता, इसलिए मालूम पड़ता है कि यह सारा संसार अज्ञानमयी प्रमोदरूपी मदिरा को पीकर उन्मत्त हो गया है।

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 आदित्यस्य गतागतै /adityasya gata gatai vairagya shloka

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