खलालापा: सोढाः /khala lapa sodha shloka vairagya
खलालापा: सोढाः कथमपि तदाराधनपरै
निगृह्यान्तर्वाष्पं हसितमपि शून्येन मनसा।
कृतश्चित्तस्तम्भः प्रहसितधियामञ्जलिरपि
त्वमाशे मोघाशे किमपरमतो निर्तयसि माम्॥६॥
दुष्टों की आराधना करते हुए मैंने उनके कटु भाषणों को किसी तरह सहा, आँसुओं को भीतर ही भीतर रोककर उदास रहते हुए भी हंसा, मन को मारकर उनके सामने अञ्जलि बाँधे रहा, हे तणे। इससे अधिक और तू कौनसा नाच नचाना चाहती है।