एकाकी नि:स्पृहः /akaki nispriha shloka vairagya एकाकी नि:स्पृहः /akaki nispriha shloka vairagyaएकाकी नि:स्पृहः शान्त पाणिपात्रो दिगम्बरः। कदा शम्भो भविष्यामि कर्मनिर्मूलनक्षमः ॥५९॥ हे शम्भो ! मैं कब अकेला, कामनारहित, शान्त, करपात्री, दिगम्बर और भवबन्धन को निर्मूलन करने वाला होऊँगा। वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक करके। -click-Vairagya satak shloka list एकाकी नि:स्पृहः /akaki nispriha shloka vairagyaवैराग्य शतकम् - vairagya satakam Share this post