F प्राप्ता श्रियः सकल /prapta shriya sakal shloka vairagya - bhagwat kathanak
प्राप्ता श्रियः सकल /prapta shriya sakal shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

प्राप्ता श्रियः सकल /prapta shriya sakal shloka vairagya

प्राप्ता श्रियः सकल /prapta shriya sakal shloka vairagya

 प्राप्ता श्रियः सकल /prapta shriya sakal shloka vairagya

प्राप्ता श्रियः सकल /prapta shriya sakal shloka vairagya


प्राप्ता श्रियः सकलकामदुधास्ततः किं

न्यस्तं पदं शिरसि विद्वषतां ततः किम्।

सम्मानिताः प्रणयिनो विभवैस्ततः किं

कल्पस्थितास्तनुभृतां तनवस्ततः किम्॥६०॥

इच्छानुसार समस्त मनोरथों को देने वाली लक्ष्मी भी यदि प्राप्त हो जाय तो उससे क्या? शत्रुओं को पद दलित किया तो उससे क्या? अपने प्रेमीजन को धन आदि से सम्मानित किया तो उससे क्या और यदि कल्प तक जीवित भी रहे तो उससे क्या? अर्थात् वैराग्य यदि न हुआ तो यह सब व्यर्थ है।

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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