F जीर्णा कन्था ततः /jirna kantha tatah shloka vairagya - bhagwat kathanak
जीर्णा कन्था ततः /jirna kantha tatah shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

जीर्णा कन्था ततः /jirna kantha tatah shloka vairagya

जीर्णा कन्था ततः /jirna kantha tatah shloka vairagya

 जीर्णा कन्था ततः /jirna kantha tatah shloka vairagya

जीर्णा कन्था ततः /jirna kantha tatah shloka vairagya


जीर्णा कन्था ततः किं सितममलपटं पट्टसूत्रंततः किं।

एकाभार्याततः किं बहु हयकरिभिः कोटिसंख्यास्ततः किं।

भक्तं भुक्तं ततः किं कदशनमथवा वासरान्ते ततः किं

व्यक्त ज्योतिर्नवान्तर्मथितभवभयं वैभवं वा ततः किम्॥६१॥

यदि कथरी जीर्ण भी हो गयी तो उससे क्या? सफेद और रेशमी वस्त्र को धारण किया तो उससे क्या? स्त्री एक ही हो तो क्या? अथवा अनेक हाथी घोड़ों आदि ऐश्वर्य से युक्त करोड़ों हो तो क्या? मध्याह्न में अच्छा खाने को मिले तो क्या? सायंकाल में खराब खाने को मिले तो क्या? तात्पर्य यह हुआ कि-यदि भवबाधा को दूर करने वाले ब्रह्मतेज को हृदय में धारण न किया तो वे सब व्यर्थ हैं।

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 जीर्णा कन्था ततः /jirna kantha tatah shloka vairagya

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