F भक्तिर्भवे मरण /bhaktirbhave maran shloka vairagya - bhagwat kathanak
भक्तिर्भवे मरण /bhaktirbhave maran shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

भक्तिर्भवे मरण /bhaktirbhave maran shloka vairagya

भक्तिर्भवे मरण /bhaktirbhave maran shloka vairagya

 भक्तिर्भवे मरण /bhaktirbhave maran shloka vairagya

भक्तिर्भवे मरण /bhaktirbhave maran shloka vairagya


भक्तिर्भवे मरणजन्मभयं हृदिस्थं

स्नेहो न बन्धुषु न मन्मथजा विकाराः।

संसर्गदोषरहिता विजना वनान्ता

वैराग्यमस्ति किमितः परमार्थनीयम्॥६२॥

भगवान् शंकर में भक्ति हो, संसार में जन्म लेने और मरने का हृदय में भय न होता हो, अपने भाई-बन्धु और रिश्तेदारों में प्रेम न हो, संसर्गदोष से रहित निर्जन बन में निवास हो, मन में कामजन्य विकार न हो तो इससे बढ़कर प्रार्थनीय और दूसरा वैराग्य ही कौन है।

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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 भक्तिर्भवे मरण /bhaktirbhave maran shloka vairagya

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