F यदा मेरुः श्रीमान् /yda meru shriman shloka vairagya - bhagwat kathanak
यदा मेरुः श्रीमान् /yda meru shriman shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

यदा मेरुः श्रीमान् /yda meru shriman shloka vairagya

यदा मेरुः श्रीमान् /yda meru shriman shloka vairagya

यदा मेरुः श्रीमान् /yda meru shriman shloka vairagya

यदा मेरुः श्रीमान् /yda meru shriman shloka vairagya


यदा मेरुः श्रीमान्निपतति युगान्ताग्निहितः

समुद्राः शुष्यन्ति प्रचुरमकरग्राहनिलिया।

धरा गच्छत्यन्तं धरणिधरपादैरपिधृता

शरीरे का वार्ता करिकलभकर्णाग्रचपले॥५८॥

जब श्रीमान् सुमेरु पर्वत प्रलयकालीन अग्नि से निहत होकर धराशायी हो जाता है, बड़े-बड़े ग्राहों का स्थान समुद्र भी सूख जाता है, पर्वतों से धारण की गई पृथ्वी भी लय को प्राप्त हो जाती है, तब हाथी के कानों के अग्रभाग के समान अति चञ्चल इस शरीर का भरोसा ही क्या है।

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
 -click-Vairagya satak shloka list 

यदा मेरुः श्रीमान् /yda meru shriman shloka vairagya

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3