F अमीषां प्राणानां /amisham prananam shloka vairagya - bhagwat kathanak
अमीषां प्राणानां /amisham prananam shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

अमीषां प्राणानां /amisham prananam shloka vairagya

अमीषां प्राणानां /amisham prananam shloka vairagya

 अमीषां प्राणानां /amisham prananam shloka vairagya

अमीषां प्राणानां /amisham prananam shloka vairagya


अमीषां प्राणानां तुलितबिसिनीपत्रपयसां

कृते किं नास्माभिर्विगलितविवेकैर्व्यवसितम्।

यदाढ्यानामाग्रे द्रविणमद निःशङ्कमनसां

कृतं वीतव्रीडैर्निजगुणकथापातकमपि॥३३॥

कमलिनी के पत्तों पर स्थित जलबिन्दु की तरह क्षणभंगुर (तुरत नाश होने वाले) इस प्राणों के लिए कर्तव्याकर्तव्य का तनिक भी विचार न करते हुए हम लोगों ने क्या-क्या नहीं कर डाला, जबकि धन के मद से उन्मत्त धनिकों के आगे निर्लज्ज होकर अपने मुँह से अपनी बड़ाई के रूप पातक को करने में भी नहीं हटे।

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
 -click-Vairagya satak shloka list 

 अमीषां प्राणानां /amisham prananam shloka vairagya

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3