F भोगे रोगभयं /bhoge rog bhayam shloka vairagya - bhagwat kathanak
भोगे रोगभयं /bhoge rog bhayam shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

भोगे रोगभयं /bhoge rog bhayam shloka vairagya

भोगे रोगभयं /bhoge rog bhayam shloka vairagya

 भोगे रोगभयं /bhoge rog bhayam shloka vairagya

भोगे रोगभयं /bhoge rog bhayam shloka vairagya


भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयंवित्ते नृपालाद् भयं

मानेदैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जरायाः भयम्।

शास्त्रेवादिभयं गुणे खलभयंकाले कृतान्ताद् भयम्

सर्व वस्तुभयान्वितं भुवि नृणां शम्भोः पद निर्भयम्॥३२॥

भोग में रोग का भय, ऊँचे कुल में उत्पन्न होने पर उससे नीचे गिरने का भय, धन रहने पर राजा का भय, मान में दीनता का भय, बल रहने पर शत्रु का भय, सौन्दर्य रहने पर वार्धक्य का भय, वेदान्तादि शास्त्र के रहने पर वाद-विवाद का भय, विनय आदि गुणों के होने पर दुष्टों का भय, शरीर रहने पर यम का भय, कहने का तात्पर्य यह कि इस संसार में सभी पदार्थ भय से व्याप्त हैं, केवल एकमात्र भगवान् शिवजी का चरण ही निर्भय का स्थान है।

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