F सा रम्या नगरी /sa ramya nagri shloka vairagya - bhagwat kathanak
सा रम्या नगरी /sa ramya nagri shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

सा रम्या नगरी /sa ramya nagri shloka vairagya

सा रम्या नगरी /sa ramya nagri shloka vairagya

 सा रम्या नगरी /sa ramya nagri shloka vairagya

सा रम्या नगरी /sa ramya nagri shloka vairagya


सा रम्या नगरी महान् स नृपतिः सामन्तचक्रं चतत्

पार्वे तस्य च सा विदग्धपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः

उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते वन्दिनस्ताः कथाः

सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपथं कालाय तस्मै नमः॥३४॥

वह पहले देखी गई मनोहर नगरी, सर्वगुण सम्पन्न वह राजा, वह लोकोत्तर उसके आधीन रहने वाले राजाओं का चक्र, उसके आसपास बैठने वाले वे पण्डितगण, परमसुन्दरी स्त्रियों का वह वर्ग, अत्यन्त प्रतापी राजपुत्रों का वह समूह, अति प्रवीण वे बन्दी और उस समय की आदर्श चरित वे कथाएँ आदि सब बातें जिस काल के वश होकर नामशेष हो गई उस काल को हम नमस्कार करते हैं।

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
 -click-Vairagya satak shloka list 

 सा रम्या नगरी /sa ramya nagri shloka vairagya

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3