सा रम्या नगरी /sa ramya nagri shloka vairagya
सा रम्या नगरी महान् स नृपतिः सामन्तचक्रं चतत्
पार्वे तस्य च सा विदग्धपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः।
उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते वन्दिनस्ताः कथाः
सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपथं कालाय तस्मै नमः॥३४॥
वह पहले देखी गई मनोहर नगरी, सर्वगुण सम्पन्न वह राजा, वह लोकोत्तर उसके आधीन रहने वाले राजाओं का चक्र, उसके आसपास बैठने वाले वे पण्डितगण, परमसुन्दरी स्त्रियों का वह वर्ग, अत्यन्त प्रतापी राजपुत्रों का वह समूह, अति प्रवीण वे बन्दी और उस समय की आदर्श चरित वे कथाएँ आदि सब बातें जिस काल के वश होकर नामशेष हो गई उस काल को हम नमस्कार करते हैं।