वयं येभ्यो जाता /vayam yebhyo jata shloka vairagya
वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलु ते
समं यैः संवृद्धाः स्मृतिविषयतां तेऽपि गमिताः।
इदानीमेते स्मः प्रतिदिवसमासन्नपतना
गतास्तुल्यावस्थां सिकतिलनदीतीरतरुभिः॥३५॥
हम जिनसे उत्पन्न हुए उन माता पिताओं को गये बहुत दिन हो गये, जिनके साथ बढ़े थे वे भी आज नामशेष हो गये, अब इस समय हम लोग नदी के किनारे बालू में उत्पन्न वृक्षों की तरह दिन-दिन मृत्यु के निकट पहुँचते जा रहे हैं।