भोगा भंगुरवृत्तयो /bhoga bhangur shloka vairagya
भोगा भंगुरवृत्तयो वहुविधास्तैरेव चायं भवस्तत्कस्येह
कृतं परिभ्रमत रे लोकाः कृतं चेष्टितैः।
आशापाशशतोपशान्तिविशदं चेतः समाधीयतां
कामोच्छेत्तृहरे स्वधामनि यदि श्रद्धेयमस्मद्वचः॥८७॥
हे मनुष्यों! इस संसार में जो नाना प्रकार के क्षणिक आदि सुख देने वाले भोग हैं, वे ही जन्म-मरण के कारण हैं, ऐसी बात को जानते हुए भी आप यहाँ किसके लिए भ्रमण कर रहे हो, ऐसे क्षणिक भोग के लिए व्यापार करना व्यर्थ है, सैकड़ों प्रकार के आशापाश को तोड़कर निर्मल चित्त होकर कामनाशक भगवान् शंकर में श्रद्धापूर्वक अपने मन को लगाओ।