F कौपीनं शतखण्ड /kaupinam satkhanda shloka vairagya - bhagwat kathanak
कौपीनं शतखण्ड /kaupinam satkhanda shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

कौपीनं शतखण्ड /kaupinam satkhanda shloka vairagya

कौपीनं शतखण्ड /kaupinam satkhanda shloka vairagya

 कौपीनं शतखण्ड /kaupinam satkhanda shloka vairagya

कौपीनं शतखण्ड /kaupinam satkhanda shloka vairagya

कौपीनं शतखण्डजर्जरतरं कन्था पुनस्तादृशी

नैश्चिन्त्य सुखसाध्यभैक्ष्यमशन निद्राश्मशाने वने।

मित्रामित्रसमानतातिविमला चिन्ताऽथ शून्यालये

ध्वस्ताशेष मदप्रमादमुदितोयोगी सुखं तिष्ठति ॥८६॥

जिनका कौपीन (लंगोटी) जीर्ण होकर टुकड़े-टुकड़े हो गया है और कथरी भी इसी तरह हो गई और जो स्वयं निश्चिन्त है, भोजन के लिए भिक्षान्न जिनको सुख से प्राप्त है, जिसकी निद्रा श्मशान में अथवा वन में हुआ करती है, शत्रु और मित्र में जिसका समान भाव है, अत्यन्त एकान्त स्थान में जिनकी समाधि लगा करती है, और मद मोह आदि सभी दोष जिसके नष्ट हो चुके हैं, ऐसे योगी इस संसार में सुखपूर्वक रह सकते हैं।

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