F शिक्षात्मक कहानियाँ -गुरुभक्त आरुणि - bhagwat kathanak
शिक्षात्मक कहानियाँ -गुरुभक्त आरुणि

bhagwat katha sikhe

शिक्षात्मक कहानियाँ -गुरुभक्त आरुणि

 शिक्षात्मक कहानियाँ -गुरुभक्त आरुणि

 शिक्षात्मक कहानियाँ -गुरुभक्त आरुणि

शिक्षात्मक कहानियाँ -गुरुभक्त आरुणि

पौम्य अपने युग के प्रतिष्ठित आचार्य थे। उनका आश्रम भी बहुत बड़ा था। आश्रम में कई शिष्य शिक्षा प्राप्त करते थे।


उन शिष्यों में एक था-आरुणि। आरुणि को गुरु का भरपूर स्नेह प्राप्त था। आरुणि की भी गुरु पर पूर्ण श्रद्धा थी।


आश्रम के पास बड़ी लम्बी-चौड़ी कृषि-भूमि थी। खेतों में फसल लहलहा रही थी। एक दिन अचानक आकाश में बादल छा गये और घनघोर वर्षा होने लगी। वर्षा बहुत तेज थी। अधिकतर शिष्य गुरु के पास से उठकर जा चुके थे। आरुणि उनके पास बैठा था।

 शिक्षात्मक कहानियाँ -गुरुभक्त आरुणि


गुरु धौम्य ने आरुणि से कहा-“बेटा! खेतों की ओर जाकर मेंडों की जाँच कर लो। जहाँ में कमजोर लगे, वहाँ मिट्टी डालकर उसे ठीक कर दो।" आरुणि खेतों पर पहुँचा तो देखा कि कई जगह पानी मेंड़ों के ऊपर से बह रहा है।


उन्हें ठीक करता हुआ वह आगे बढ़ा तो देखा कि एक स्थान पर मेंड़ के बीच बहुत बड़ा स्थान कट गया है और पानी बड़ी तेजी से बह रहा है।


आरुणि उस कटाव के स्थान को मिट्टी डाल-डालकर भरने लगा। लेकिन ज्यों ही वह एक बहुत बड़ा मिट्टी का ढेला वहाँ रखता और दूसरा लेने जाता त्यों ही पहले वाला ढेला गिरकर बह जाता। उसका पूरा प्रयत्न व्यर्थ जा रहा था और उसकी परेशानी बढ़ती जा रही थी।


आरुणि को एकाएक एक उपाय सूझा। उसने एक बड़ा ढेला कटाव वाली जगह में रखा और उसके साथ ही मेंड़ के सहारे स्वयं लेट गया। ऐसा करते ही पानी का बहाव रुक गया।


आरुणि वहीं उसी प्रकार लेटा रहा। रात हो जाने पर भी वह आश्रम को नहीं लौट सका। यह देख गुरुजी चिंतित हो गये। वे कुछ शिष्यों को साथ लेकर खेत की ओर गये। जाकर आरुणि का नाम लेकर पुकारा तो आरुणि ने उत्तर दिया-“गुरुवर! मैं यहाँ हूँ।"

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


स्वर का अनुगमन करके गुरु और शिष्य वहाँ पहुँचे तो देखा कि आरुणि मेंड़ से चिपका हुआ है। गुरु बोले-“वत्स! तुम्हें इस प्रकार पड़े रहने की क्या आवश्यकता थी! यदि तुम्हें कुछ हो जाता तो!”


आरुणि ने उत्तर में कहा- “गुरुवर! यदि मैं अपना कर्तव्य अधूरा छोड़कर चला जाता तो गुरु का अपमान हो जाता। रही मुझे कुछ हो जाने की बात, तो जब तक आपका वरद हस्त एवं आशीर्वाद मेरे साथ है, तब तक मेरा कुछ भी अनिष्ट नहीं हो सकता। गुरु का स्थान तो भगवान से भी ऊँचा है।"


आरुणि के कथन से गुरुजी का हृदय भर आया। स्नेह-भरे स्वर में बोले-“आरुणि! तुमने गुरु-शिष्य के संबंध का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया है।


यह उदाहरण सदा के लिए अमर हो गया। मैं तुमसे अत्यधिक प्रसन्न हूँ। तुमने इस संबंध की अंतिम परीक्षा पास कर ली है।"

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