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प्रेरणादायक हिंदी कहानियां PDF -त्याग में छिपा है सुख

bhagwat katha sikhe

प्रेरणादायक हिंदी कहानियां PDF -त्याग में छिपा है सुख

 प्रेरणादायक हिंदी कहानियां PDF -त्याग में छिपा है सुख

 प्रेरणादायक हिंदी कहानियां PDF -त्याग में छिपा है सुख

प्रेरणादायक हिंदी कहानियां PDF -त्याग में छिपा है सुख

एक बहुत बड़े योगी थे। सिद्ध योगी। उनका वरदान अटल होता था। एक बार उनके पास चार व्यक्ति पहुँचे। सभी ने अपनी-अपनी व्यथा-कथा योगी महाराज के सामने रखी।


सबने कहा- “योगिराज! कृपया यह वरदान देकर कृतार्थ करें कि हम जिस वस्तु की इच्छा करें, हमें वही प्राप्त हो जाये।"


योगी ने उन्हें समझाया-“वास्तविक सुख वस्तुओं में नहीं है। वस्तु का प्राप्त हो जाना ही सब कुछ नहीं है।" पर योगी की बात को सन लेने पर भी उनका आग्रह कम नहीं हुआ।


कहने लगे-“कृपा करके आप हमें यश, पत्र, धन और स्त्री की मनोकामना पूर्ण होने का वरदान देकर कृतार्थ करें।"

 प्रेरणादायक हिंदी कहानियां PDF -त्याग में छिपा है सुख


योगी परम दयालु थे। अतः उन्होंने चारों को उनकी इच्छा-पूर्ति का वरदान दे दिया। समय पर वरदान का फल मिला। चारों को मन-माफिक वस्तयें प्राप्त हो गईं।


लेकिन वे लोग पहले की अपेक्षा अब और अधिक अशान्त और परेशान रहने लगे। जब अशान्ति और परेशानी सीमा से आगे बढ़ने लगी तो वे फिर उन योगिराज के पास जा पहुँचे।


योगी ने जब उनसे कुशल-मंगल का प्रश्न किया तो वे कहने लगे-“महाराज! यश की बढ़ती हई इच्छा ने जीवन को अनियन्त्रित कर दिया।


पुत्र की स्वच्छंदता (अनियन्त्रण) ने प्रतिष्ठा को धल में मिला दिया। धन की लालसा ने सबको बेगाना बना दिया, अपनापन उजड़ गया। स्त्री के प्रति बड़ी आसक्ति ने पुरुषार्थ को समाप्त कर दिया।"

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


योगिराज मुस्कराये। कुछ देर कुछ सोचते रहे। फिर बोले-“तमने जो वरदान मांगा था, तुम्हें मिल गया था। ...अब मझसे क्या चाहते हो?"


चारों व्यक्तियों ने कहा- “योगिराज! हमें शान्ति का वरदान दीजिए।"

योगिराज ने स्पष्ट किया-“सुख कहीं बाहर से नहीं आता। सुख का स्रोत तुम्हारे भीतर है। तुम केवल इतना करो कि वस्तुओं को तो भोगो, पर वस्तुयें तुम्हें न भोगने पायें अर्थात् तुम उन सुखों के दास मत बनो।


यदि भोग में सुख होता तो बड़े-बड़े जो ऋषि-मुनि हुए हैं, उन्होंने अपना सब कुछ त्यागकर संन्यास नहीं लिया होता।"


योगिराज ने कुछ रुककर पुनः कहा-“किसी भी पदार्थ से अपना काम तो चलाओ पर उसमें चिपट न जाओ। त्याग की भावना भी रखो, त्याग दो। इसलिए कहा गया है-


“ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्वित् धनम्॥"

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