F प्रेरक कहानियां हिंदी -ब्रह्म का साक्षात्कार - bhagwat kathanak
प्रेरक कहानियां हिंदी -ब्रह्म का साक्षात्कार

bhagwat katha sikhe

प्रेरक कहानियां हिंदी -ब्रह्म का साक्षात्कार

 प्रेरक कहानियां हिंदी -ब्रह्म का साक्षात्कार

 प्रेरक कहानियां हिंदी -ब्रह्म का साक्षात्कार

प्रेरक कहानियां हिंदी -ब्रह्म का साक्षात्कार

बृहस्पति देवताओं के गुरु कहे जाते हैं। उनका एक पुत्र था-कचा कच की इच्छा हुई कि ब्रह्मविद्या प्राप्त की जाये। इस इच्छा की पूर्ति के लिए वह वन में जाकर तपस्या करने लगा।


तपस्या करते-करते कई वर्ष बीत गये। एक दिन उसे देखने के लिए बृहस्पति वन में गये। वे वहाँ कुछ दिन रुके और कच की तपस्या को देखा। तपस्यालीन कच बहुत ही सीमित आहार लेता था। अत: उसका शरीर दुबला और पतला हो गया था।


बृहस्पति ने पुत्र से पूछा- “तपस्या करके तुम्हें क्या प्राप्त हुआ?"


कच ने उत्तर दिया-"पिताजी! मैंने समस्त सुखों को त्याग दिया है, पर फिर भी मुझे शान्ति नहीं मिली।"

 प्रेरक कहानियां हिंदी -ब्रह्म का साक्षात्कार


बृहस्पति बोले-“बेटा! तुमको तप के सच्चे मार्ग का ज्ञान ही नहीं है। सब कुछ त्यागोगे तभी तपस्या सफल होगी।"


पिता के निर्देश के अनुसार कच ने सभी प्रकार के भोजन और वस्त्रों का त्याग कर दिया। कुछ दिन बीत जाने पर बृहस्पति पुनः कच से मिलने के लिए वन में गये। उनके प्रश्न करने पर कच ने वही उत्तर दिया-"पिताजी! सब कुछ त्याग देने पर भी शान्ति की प्राप्ति नहीं हुई।"


बृहस्पति समझाने लगे-“सब कुछ त्याग देने का अर्थ केवल कपड़े उतार देना नहीं है। आहार छोड़ देना भी सब कुछ त्याग देना नहीं है।


तुम्हारी तपस्या बाहरी है, भीतर की तपस्या नहीं हो रही है।" यह कहकर उन्होंने प्रश्न किया-"तुम किसलिए तपस्या कर रहे हो?"

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


कच ने उत्तर दिया- "ब्रह्म का साक्षात्कार करने के लिए।"

बृहस्पति बोले-“ध्यान से सुनो और समझो। ...दो व्यक्ति आमने-सामने बैठे हैं और उन दोनों के बीच में कोई परदा डाल दिया जाये या अन्य कोई बाधक चीज आ जाये तो उन दोनों का साक्षात्कार नहीं हो पायेगा।


सर्वत्याग के लिए अहंकार को भी त्यागना पड़ता है। तुम्हें ब्रह्म के साक्षात्कार करने का लोभ तो है ही। यह सोचना भी अहंकार है कि मैं ब्रह्म साक्षात्कार के लिए यह कर रहा हूँ।


इसके लिए मैंने यह किया है, वह किया है। ब्रह्म को प्राप्त करने के लिए अहं का त्याग करना होगा। तुम्हें अपनी साधना का अहंकार है। ब्रह्म के साक्षात्कार में यह अहंकार भी बाधक है।"


पिता की बात सुनकर कच ने समाधि धारण कर ली। अब उसका अहंकार छूट गया। मन से यह भाव भी निकल गया कि मैं मै हूँ और यह जगत प्राणियों का है। यह होते ही उसे ब्रह्म का साक्षात्कार हो गया।

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