धार्मिक कथाएं इन हिंदी -अवश्य मिलता है पाप या पुण्य का फल

 धार्मिक कथाएं इन हिंदी -अवश्य मिलता है पाप या पुण्य का फल

धार्मिक कथाएं इन हिंदी -अवश्य मिलता है पाप या पुण्य का फल


रेलगाड़ी में दो व्यक्ति साथ-साथ यात्रा कर रहे थे। उनमें से एक थे धनधान्य से सम्पन्न धार्मिक विचारों के सेठ जी और दूसरे थे उदार चित्त वाले परमहंस महात्मा। दोनों ही ईश्वर-चर्चा में निमग्न बातें कर रहे थे।


कोई रेलवे स्टेशन आ गया था, इसलिए गाड़ी रुक गई। गाड़ी रुकते ही एक सूट-बूट पहने हुए बाबूजी ने डिब्बे में प्रवेश करते हुए एक सूटकेस उन दोनों के पास रखकर उन्हें सौंपते हुए कहा-“तनिक इस सूटकेस पर निगाह रखना, मैं अपना शेष सामान लेकर अभी आता हूँ।"


इतना कहकर बाबूजी प्लेटफार्म पर उतर गये। बाबूजी अपना सामान लेकर लौटे नहीं और गाड़ी सीटी देकर चल पड़ी।

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अगले स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो सेठजी उतरकर गार्ड के पास गये और विनयपूर्वक बोले-“बाबूजी! पिछले स्टेशन पर एक बाबू साहब अपना सूटकेस हमें सौंप गये थे पर वे लौटकर नहीं आये।


सम्भवतः वे गाड़ी में चढ़ नहीं पाये। कृपया यह सूटकेस उनकी तलाश करके उन्हें दे दीजिएगा।" गार्ड ने सेठजी की उपस्थिति में ही सूटकेस को खुलवाया तो उसमें एक स्त्री का शव रखा हुआ मिला।


फिर क्या था! गार्ड ने पुलिस बुलाई और पुलिस ने सेठ जी को गिरफ्तार कर लिया। सेठजी के साथी महात्मा जी ने बहुतेरा कहा कि यह व्यक्ति निर्दोष है, पर पुलिस ने उनकी बात नहीं मानी।


सेठजी ने महात्मा जी से कहा-“कृपया आप मेरे पुत्रों एवं सम्बन्धियों को सूचना दे दीजिए कि मैं इस तरह फंस गया हूँ।"


पुलिस सेठजी को कारागार में बंद करने के लिए ले गई। महात्मा जी को इससे बड़ा दुःख हुआ। वह मन-ही-मन विचार करने लगे-'हे भगवान।


इतना अन्याय! निरपराध व्यक्ति की यह दुर्दशा! कैसे यह सब हो गया!' इस प्रकार विचार करते-करते उन्हें नींद आ गई।


नींद आई तो वे स्वप्न देखने लगे। स्वप्न में उनके गुरुदेव उनसे कह रहे थे-“भगवान के यहाँ अन्याय नहीं है। इस सेठ ने पन्द्रह वर्ष पहले ऐसा ही अपराध किया था। उसी का फल उसे मिला है। सेठ को निश्चित रूप से प्राणदण्ड की सज़ा दी जायेगी।"

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


स्वप्न देखते ही महात्मा जी की नींद खुल गई और उन्हें यही घबराहट होने लगी-“हे राम! गुरु महाराज के ये कैसे वचन!"


महात्मा जी ने सोचा-चलकर पता लगाया जाये।

अगले स्टेशन पर वे गाड़ी से उतर पड़े। लौटकर पिछले स्टेशन पर पहुँचे। सेठ का पता लगाकर जेल में जाकर उनसे मिले। दोनों में बातचीत हुई तो सेठजी कहने लगे-“मेरा एक बाग था।


उसमें आम के वृक्ष लगे थे और उन पर आम के फल लगे हुए थे। चोर वहाँ जाकर आम तोड़ ले जाते थे। नौकरों से मुझे रोज ही इस प्रकार की शिकायत मिलती।


एक दिन मुझे क्रोध आ गया और बाग में जाकर बैठ गया और सारी रात जागता रहा। तभी एक चोर आया और आम तोड़ने लगा।


मैंने झपटकर उसे पकड़ लिया और उसकी इतनी पिटाई की कि उसने दम तोड़ दिया। इस डर से कि किसी को मालूम न हो, वहीं एक गड्ढा खोदकर उसके शव को गाड़कर दबा दिया और ऊपर से घास-फूस रख दिया।"


महात्माजी ने यह सुना तो उनकी आँखें आश्चर्य से खुली-की-खुली रह गई। उन्होंने आह भरते हुए कहा-“पाप और पुण्य का फल कभी-न-कभी मनुष्य को भोगना ही पड़ता है।"

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