F प्रेरणादायक कहानी -अब कुछ नहीं कहना - bhagwat kathanak
प्रेरणादायक कहानी -अब कुछ नहीं कहना

bhagwat katha sikhe

प्रेरणादायक कहानी -अब कुछ नहीं कहना

प्रेरणादायक कहानी -अब कुछ नहीं कहना

 प्रेरणादायक कहानी -अब कुछ नहीं कहना

प्रेरणादायक कहानी -अब कुछ नहीं कहना


बहुत पहले मालवा में एक जमींदार था। बहुत ही सम्पन्न पर अत्यन्त कंजूस एवं रूखे स्वभाव का। वह न तो कुछ दान-पुण्य करता था और न ही किसी की सहायता।


एक दिन एक फकीर उसके महल के द्वार पर आया और कुछ माँगने की फरियाद की। पर जमींदार तो कंजूस था, उसने फकीर को कुछ भी नहीं दिया, खाली हाथ लौटा दिया।


दूसरे और तीसरे दिन भी यही हुआ। फकीर को कुछ नहीं मिला और खाली हाथ लौट आया। एक दिन जब वह जमींदार अपने खेतों में काम कर रहा था, यह फकीर वहाँ जा पहुँचा।

 प्रेरणादायक कहानी -अब कुछ नहीं कहना


उसने जमींदार से कहा- “मुझे तुझसे कुछ नहीं माँगना। पर मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ, उसे सुन तो ले।" पर जमींदार तो कुछ सुनने के लिए तैयार ही न था।


फकीर ने तब भी पीछा नहीं छोड़ा। जब जमींदार खेतों से अपने घर की ओर चला तो फकीर यही कहते-कहते उसके पीछे-पीछे चलने लगा।


फकीर की इस धृष्टता से उसे क्रोध आ गया और उसके हाथ में जो छोटा-सा डंडा था, खींचकर फकीर को दे मारा। फकीर दुबला-पतला और कमजार था, इसलिए चोट खाते ही बेहोश हो गया।


फकीर को बेहोशी की हालत में देखा तो जमींदार की अकड़ ढीली पड़ गई। उसने फकीर के मुँह पर पानी के छींटे मारे ताकि वह होश में आ जाये।

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर

जब फकीर को होश आ गया तो जमींदार बोला-“कहो बाबा, क्या कहना चाहते हो!"

फकीर ने कहा-“अब कुछ नहीं कहना है।"


पाँच शब्दों का वाक्य परोसकर फकीर चला गया। पर जमींदार के मन में उत्सुकता जम गई कि आखिर फकीर क्या कहना चाहता था।


अत: वह तरह-तरह की शंकायें करने लगा। जाने क्या-क्या सोचने लगा। इस सम्बन्ध में उसकी चिन्ता इतनी बढ़ गई कि अब उसका मन जमींदारी के कामों में नहीं लगता था।


धीरे-धीरे लोभ ने उसके मन से किनारा कर लिया। उसके मन में अपराध बोध की जिज्ञासा जाग उठी और धीरे-धीरे अपनी आत्मग्लानि को दूर करने के लिए दूसरों की भलाई के कार्यों में भाग लेने लगा। दीन-दुखियों की मदद करने लगा।


समय की बात, जो जमींदार कभी किसी को कुछ भी देने के लिए तैयार नहीं होता था, उसकी दानवीरता और सेवाभाव की चर्चा चारों ओर होने लगी। अब लोग उसका सम्मान भी करने लगे थे।


कई वर्ष बीत गये। एक दिन वही फकीर जमींदार के दरवाजे पर आया। उसका दृश्य बिल्कुल बदला हुआ था।


जमींदार ने फकीर को पहचान लिया और उसके पैरों में गिर गया। फिर उठा और हाथ जोड़कर बोला-“बाबा! अब तो बता दो, क्या कहना चाहते थे!"


फकीर ने हँसते हुए कहा-“अब कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है जो कहना था, वह तुझे कर दिखाया।"

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