Preranadayi kahani / क्रोध से परहेज

Preranadayi kahani / क्रोध से परहेज

Preranadayi kahani / क्रोध से परहेज


बात बहुत पुरानी है। एक गाँव था। गाँव से थोड़ी दूर एक जंगल था। जंगल में एक महात्मा ने अपनी कुटिया बना रखी थी।


वहीं रहकर वे अपनी साधना करते थे। उनके स्वभाव में इतनी शान्ति थी कि उन्हें कभी क्रोध नहीं आता था। इतने दयावान और क्षमाशील थे कि उनकी सभी प्रशंसा एवं सम्मान करते थे। उनका यह यश दूर-दूर तक फैला हुआ था।


एक दिन कुछ दुष्ट स्वभाव के लोगों ने आपस में विचार किया कि कोई ऐसा काम किया जाय जिससे शान्त स्वभाव के इन महात्मा के मन में क्रोध आ जाये और उनके सम्मान में कमी आ जाये। सबने अपने-अपने सुझाव दिये।


अन्त में एक उपाय तय कर लिया गया। अपने निर्णय के अनुसार एक दिन वे लोग महात्मा जी की कुटिया पर गये।

Preranadayi kahani / क्रोध से परहेज


वहाँ उनमें से एक ने महात्मा जी से कहा-“बाबा! ज़रा अपनी गाँजा पीने की चिलम तो दे दो।" महात्मा जी ने सरल स्वभाव से उत्तर दिया“मेरे पास गाँजा पीने की चिलम नहीं है क्योंकि मैं गाँजा पीता ही नहीं।"


वह व्यक्ति फिर बोला- “तो फिर भांग की पुड़िया ही दे दो।" “मैंने तो आज तक भांग को देखा भी नहीं।" महात्मा जी ने कहा।


उनके इस उत्तर के बाद एक दूसरा व्यक्ति बोला-अरे बाबा! क्यों झूठ बोलते हो! क्या तुम भूल गये कि मैं और तुम दोनों एक साथ जेल में रह चुके हैं। हम दोनों में वहाँ किसी बात पर झगड़ा भी हो गया था। तब तुमने मझे डंडे से पीटा था।"


इस प्रकार वे सब मिलकर अनेक प्रकार की अनर्गल बातें करते रहे। पर महात्मा जी पर इन फब्तियों का कोई असर न होना था, न हुआ। उलटे उनकी बातों को सुनकर वे मुस्करा उठते थे।


अन्त में उनमें से एक ने कहा-“अरे यह महात्मा ढोंगी है! चलो, चलते हैं।" और वे चलने को तैयार हो गये।


अब महात्मा जी ने चुप्पी तोड़ी और बोले-“अरे भाई! इतनी देर से आप लोग कुछ-न-कुछ गा रहे थे। तुम्हें थकान हो गई होगी।

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


एक भक्त मुझे गुड़ की एक डली 'दे गया है। लो, इसे खाकर पानी पी लो, तुम लोगों की थकान दूर हो जायेगी।"


महात्मा जी की बात सुनकर एक बोला-"महात्मा जी! हम लोगों ने आपसे न जाने कितनी भली-बुरी बातें कहीं, तब भी आपको क्रोध क्यों नहीं आया।?"


महात्मा जी ने उत्तर दिया-“बेटा! जिसके पास जो माल होता है, वह उसी को दिखाता है। यह तो ग्राहक की ही इच्छा पर निर्भर है कि उसको ले या न ले ।


तुम्हारे पास जो था वही दिखाया। लेकिन मुझे वह माल पसन्द नहीं था, इसलिए नहीं लिया।"


कुछ देर महात्मा जी मौन होकर कुछ सोचते रहे। फिर बोले-"काइ आदमी गलती करता है तो करे। उसके सामने वाला भी वैसी ही गलती करे, यह न ता आवश्यक है और न ही उचित।


यदि वह भी यही गलती करेगा तो उन दोनों में फर्क ही क्या रह जाएगा?" ___महात्मा जी को क्रोध दिलाने के लिए आये सभी लोग उनके चरणों में गिर पड़े और भविष्य में ऐसी गलती न करने की प्रतिज्ञा कर ली।

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