Preranadayi katha -प्रभु-दर्शन का मार्ग

Preranadayi katha -प्रभु-दर्शन का मार्ग

Preranadayi katha -प्रभु-दर्शन का मार्ग


- एक भक्त था। प्रभु-दर्शन के लिए वह बहुत व्याकुल रहता था। अपने उद्देश्य की प्राप्ति का रास्ता जानने के लिए वह एक गुरु के पास पहुँचा और अपना आने का उद्देश्य उनको बताया।


गुरु बोले-“वत्स! यदि तुम प्रभु-मिलन का मार्ग ढूँढ़ना चाहते तो तुम सदना के पास चले जाओ। वहाँ तुम्हारी समस्या का समाधान हो जायेगा।"


भक्त सदना के पास पहुँचा। सदना कसाई था और माँस बेच रहा था। भक्त को देखते ही बोला-“तुम्हें गुरुजी ने भेजा है न। थोड़ी देर रुक जाओ, मैं दुकान बढ़ाकर तुम्हारे साथ ही चलता हूँ।"


भक्त के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। कैसे इसे मेरे आने का पता चल गया! सदना भक्त को साथ लेकर अपने घर के लिए चल पड़ा।


घर जाकर भक्त ने देखा कि घर के दरवाजे पर एक चारपाई पर पड़ा सदना का बूढ़ा बाप खाँसी से परेशान है। वह लगातार खाँसे ही जा रहा है।

Preranadayi katha -प्रभु-दर्शन का मार्ग


सदना ने बाप को दवा दी। फिर घर की ओर बढ़ा। उसके कई बच्चे थे। उसने सबको गोद में लिया, पुचकारा और पत्नी से घर का हाल-चाल पूछा।


रात का क्या भाजन बनेगा, इसकी भी चर्चा की। इसके बाद वह भक्त की ओर मुखातिब हुआ।


भक्त के मन में अनेक प्रकार की शंकायें उठ रही थीं। वह सोच रहा था-यह सदना तो बड़ा ढोंगी है। घर-परिवार में ही फँसा रहता है। माँस बेचने का धंधा करता है और घोर पापी का जीवन बिताता है। भला यह मुझे क्या भगवान के दर्शन करायेगा!


यह सोचता हुआ वह सदना से पिंड छुड़ाना चाह रहा था। इसके लिए वह उपाय सोच ही रहा था कि सदना बोल पड़ा-“आप सोच रहे होंगे कि एक कसाई मुझे भक्ति का क्या मार्ग बतायेगा।

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


यह दिन-रात मायाजाल में फंसा रहता है, नीच कार्य करके उपेक्षित जीवन जी रहा है। नहीं, यह असम्भव है। यह कोई उचित रास्ता नहीं दिखा सकता।”


भक्त ने सदना के मुँह से यह बात सुनी तो वह हैरान रह गया।


सदना ने आगे कहा-“कसाइयों में मेरा जन्म हुआ है, पर इसमें मेरा क्या दोष है? यह तो प्रभु का दिया हुआ है।


पर इससे स्वयं को अपना समझकर मैं प्रभु को दोष भी नहीं दे सकता। मैंने कसाई परिवार में जन्म लिया, अतः माँस काटने और बेचने का धंधा करना ही पड़ेगा।


माता-पिता ने मुझे पैदा किया, उनकी सेवा-सुश्रुषा भी आवश्यक है। पत्नी और बच्चों के पालन-पोषण का उत्तरदायित्व भी निभाना पड़ता है।


यह सब करते हुए भी प्रभु का नाम जपता रहता हूँ। मेरा तन गृहस्थी में रहता है और मन प्रभु-स्मरण में।"


यह सुनकर भक्त ने सदना के चरणों में सिर झुकाया और बोला- “मुझे प्रभु-दर्शन का मार्ग मिल गया।"

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