प्रेरणादायक Kahaniya -भाषा स्वार्थ की,परमार्थ की

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सौराष्ट्र प्रदेश के एक गाँव की घटना। घटना उस समय की है जब यातायात के साधनों का आज जैसा विकास नहीं हुआ था। गाँव में कई. प्रतिष्ठित सेठ-साहूकार रहते थे।


उन्हें कहीं आना-जाना होता था, तो घोड़ा या घोड़ी पर सवार होकर आते-जाते थे। इसी में वे अपना गौरव समझते गाँव में एक साहूकार को किसी जरूरी काम से पास के ही एक गाँव में जाना था।


पर उसकी घोड़ी बीमार थी। साहूकार इस बात पर बहुत देर विचार करता रहा कि अब मैं कैसे जाऊँ? अन्त में उसे एक उपाय सझा और वह अपने भाई के पास जा पहुंचा।


वहाँ जाकर भाई से बोला- “भाई! मुझे किसी जरूरी काम से पड़ोस के गाँव में जाना है। मेरी घोड़ी बीमार है। मुझे अपनी घोड़ी दे दो, दोपहर तक लौट आऊँगा।" ..


भाई घोड़ी देना नहीं चाहता था। छूटते ही बोला-“भाई! मेरी घोड़ी घर पर नहीं है, लड़का कहीं ले गया है, वह लौटकर आयेगा तो खेतों पर ही ठहर जायेगा। यहाँ नहीं आयेगा।"

 प्रेरणादायक Kahaniya -भाषा स्वार्थ की,परमार्थ की


साहूकार निराश होकर चलने के लिए पीछे पलटा तो भाई की अन्दर घर में बँधी घोड़ी की हिनहिनाहट सुनाई पड़ गई। वह अपने भाई से बोला-“भाई! घोड़ी तो अन्दर बँधी है और बोल रही है, आप झूठ क्यों बोल रहे हो? घोड़ी तो भीतर से बोल रही है।"


भाई को उसकी बात पर गुस्सा आ गया। वह इसलिए और भी अधिक खीज गया कि उसका झूठ पकड़ा गया है। बोला-“अरे बेवकूफ! तूने बेजुबान घोड़ी की भाषा तो समझ ली, पर भाई की भाषा तेरी समझ में नहीं आई?"


साहूकार ने कहा-“भाई! इस घोड़ी की आवाज ने मेरी आँखें खोल दीं। अब मेरी समझ में आया कि जानवर इंसान की तरह स्वार्थ की भाषा नहीं बोलता, इसलिए उसकी भाषा कोई भी समझ सकता है पर इंसान की भाषा को समझना बड़ा मुश्किल है।"

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


यह कहकर साहूकर चुपचाप चल पड़ा।

अब साहूकार के भाई को अहसास हुआ कि मैंने झूठ बोलकर बड़ी गलती कर दी है। वह दौड़कर अपने भाई के पास पहुँचा और उसका हाथ पकड़कर बोला-“भाई! आज इस घोड़ी ने मुझे ये बहुत अच्छा पाठ पढ़ाया है।


वास्तव में मेरे मन में यह स्वार्थ था कि मैं किसी को घोड़ी भाड़े पर दे दूंगा और कमा लूँगा। मैं लोभवश रिश्ते-नाते को भूल गया। मुझे माफ कर दे मेरे भाई और घोड़ी ले जा।" यह कहकर वह घर में से घोड़ी ले आया और साहूकार को दे दी।

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