F Drishtant Sangrah - राम की ठोकर : अहिल्या का उद्धार - bhagwat kathanak
Drishtant Sangrah - राम की ठोकर : अहिल्या का उद्धार

bhagwat katha sikhe

Drishtant Sangrah - राम की ठोकर : अहिल्या का उद्धार

Drishtant Sangrah - राम की ठोकर : अहिल्या का उद्धार

Drishtant Sangrah - राम की ठोकर : अहिल्या का उद्धार

Drishtant Sangrah - राम की ठोकर : अहिल्या का उद्धार

एक अत्यन्त सुलझे हुए आध्यात्मिक गुरु थे। उनके आश्रम में एक प्रखर बुद्धिमान शिष्य अध्ययन कर रहे थे। नाम था-महानन्द।


एक दिन आध्यात्मिक चर्चा चल रही थी। इस अवसर पर महानन्द ने गुरु जी से प्रश्न किया- “गुरो! कहा जाता है कि श्री रामचन्द्र ने अपने चरण-कमलों की ठोकर मारकर ऋषि गौतम की पत्नी का उद्धार किया था। तो क्या यह सही है?"


शिष्य क इस प्रश्न से गुरु के चेहरे पर मुस्कान उभर आई। मुस्करात हुए वे बोल-"वत्स! यह परम्परा से कही जाती रही एक बात है, सत्य नहीं है।

Drishtant Sangrah - राम की ठोकर : अहिल्या का उद्धार


भगवान राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम क्या किसी नारी को अपने पैर से ठोकर मार सकते थ? ठोकर मारना तो दूर, ठोकर मारने की कल्पना भी वे नहीं कर सकते थे।


इस कथा में क्या रहस्य छिपा है, उसे समझने की आवश्यकता है।" शिष्य ने अनुरोध किया-“कृपा करके समझा दीजिए।"


गुरु बोले-“श्रीराम प्रत्येक विज्ञान के ज्ञाता थे। पृथ्वी-विज्ञान के सिद्ध विद्वान थे। उन्होंने अपने इसी ज्ञान का प्रयोग करके प्रजा के उत्थान का प्रयास किया था। पर यह कथा इस रूप में प्रचलित हो गई, जैसे केवल तुम ही नहीं, और सब भी कहते हैं।"


गुरु क्षणभर रुककर फिर बोले- "वत्स महानन्द! यहाँ अहिल्या का अर्थ पृथ्वी है। ऐसी भूमि जो उपजाऊ तो हो पर उसमें अन्न न उगाया जा रहा हो।


अर्थात् जो भूमि बंजर पड़ी हो। इस तरह वास्तव में बंजर के रूप में बाँझ पड़ी पृथ्वी को ही अहिल्या कहा जाता है।"

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


गुरुजी ने सत्य को स्पष्ट करते हुए कहा -“महानन्द! जब श्रीराम को अयोध्या त्यागकर वन जाने की आज्ञा मिली तो श्रीराम सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास जा रहे थे।


जब उन्होंने निषादराज की सीमा में प्रवेश किया तो निषादराज ने उन तीनों का पवित्र और प्रेम पूरित भाव से स्वागत किया और कहा-“महाराज! मेरे योग्य कोई सेवा हो तो कृपया निर्देश दीजिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकू निषादराज के विनय-भरे कथन को सुनकर श्रीराम भाव-विभोर हो गये और कहा- "प्रिय बन्धु निषादराज! यह जो कृषि योग्य भूमि बंजर के रूप में बेकार पड़ी है, इसे उपजाऊ बनाओ।


अपने कृषकों को आदेश देकर प्रेरित करो कि इस वज्रतुल्य भूमि को खाद-पानी देकर जोतें और उपजाऊ बनायें। फिर इसमें बीज डालकर अन्न की फसल उत्पन्न करें।"


निषादराज ने प्रभु का आदेश स्वीकार कर लिया। उनके किसानों और श्रमिकों ने अथक कड़ी मेहनत की। फिर क्या था! देखते ही देखते भूमि में फसल लहलहा. उठी।


इस प्रकार रामचन्द्र जी के कहने पर उस पत्थर जैसी पृथ्वी को उपजाऊ बनाया। उसका उद्धार किया जाना यही अहिल्या (पृथ्वी) का वास्तविक उद्धार है।"


महानन्द अहिल्या की इस व्याख्या से पूर्ण सन्तुष्ट हो गये। उन्होंने कहा-“इस परम्परित कथा में कितना शुद्ध एवं पवित्र संदेश है। इस संदेश को जन-जन में प्रचारित करने की बड़ी आवश्यकता है।"

 दृष्टान्त महासागर के सभी दृष्टांतो की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickdrishtant mahasagar list

Drishtant Sangrah - राम की ठोकर : अहिल्या का उद्धार


Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3