F drishtant sangrah pdf -बुरी आदत छूट सकती है - bhagwat kathanak
drishtant sangrah pdf -बुरी आदत छूट सकती है

bhagwat katha sikhe

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भूदान-यज्ञ के जनक आचार्य संत विनोवा भावे के जीवन-चरित्र से सभी परिचित हैं। बात तब की है जब वे पवनार आश्रम में रह रहे थे।


उन दिनों वे चिन्तन-मनन एवं लेखन के कार्यों में व्यस्त रहते थे। तरह-तरह के लोग उनसे मिलने आते और अपनी समस्याओं को उनके सामने बताकर उनका समाधान चाहते थे।


विनोवा जी भी उन्हें कोई-न-कोई समाधान (मार्ग) अवश्य बता देते थे।

एक दिन एक शराबी उनके पास आया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

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भावे जी ने उसे बैठने का संकेत करते हुए पूछा कि क्या परेशानी है? शराबी बोला-“बाबा! मैं शराब के नशे में जकड़ा रहता हूँ। इसके कारण मैं ही नहीं, मेरा पूरा परिवार तबाह हुआ जा रहा है। मैं चाहता हूँ, शराब पीना छोड़ दूं। कृपा करके कोई मार्ग बता दीजिए।"


शराबी की बात सुनकर विनोवा जी ने सहज भाव से कहा-“अरे! यह क्या मुश्किल है? शराब पीना छोड़ना चाहते हो तो पीना छोड़ दो।"


शराबी बोला-“छोड़ने की बड़ी कोशिश की है, पर यह छूटती ही नहीं। समझ में नहीं आता, क्या करूँ? आप ही कोई तरकीब बता दीजिए।"


सुनकर विनोवा जी शान्तचित्त होकर कुछ देर कुछ सोचते रहे, फिर बोले-“कल शाम को पाँच बजे मेरी कुटिया में आना। आकर बाहर से ही मुझे पुकारना। हो सकता है, कोई तरकीब निकल आये।"


अगले दिन वह व्यक्ति निश्चित किए हुए समय पर वहाँ पहँच गया। कुटिया पर पहुँचकर बाहर से उनका नाम लेकर पुकारने लगा। विनोबा जी कुटिया के अन्दर थे। वहीं से चिल्लाने लगे-“मैं बाहर कैसे आऊँ! वह खम्भा मुझे जकड़े हुए है।"


शराबी व्यक्ति हैरान! भला खम्भा विनोबा जी को कैसे जकड़ सकता है! उसने झाँककर अन्दर देखा तो विनोबा जी ने स्वयं खम्भे को जकड़ा हुआ था। वह मुस्कराकर बोला-“बाबा! खम्भे ने आपको जकड़ रखा है या आपने खम्भे को जकड़ रखा है!"

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


यह सुनते ही विनोबा जी ठहाका लगाकर हँसने लगे। हँसते हुए ही उन्होंने कहा-“जो हाल मेरा है, वही हाल तुम्हारा भी है।


तुम भी शराब को छोडना नहीं चाहते और कहते हो कि शराब छटती नहीं। जब तक तुम्हारी अपनी इच्छा-शक्ति जाग्रत नहीं होगी तब तक कोई रास्ता नहीं निकलेगा।


जैसे मैं खम्भे को जकड़े रहा हूँ वैसे ही शराब तमको जकडे रहेगी। जब तम शराब छोड़ने की इच्छा-शक्ति को मजबूत कर लोगे, शराब तुम्हें छोड़ देगी।"


शराबी यह प्रेरणा पाकर प्रसन्न हो गया। उसका मरझाया चेहरा चमकने लगा। कृतकृत्य होकर वह बोला-“धन्य हो बाबा! मैंने तो इस तरह सोचा ही नहीं था। अब मैं इसे छोड़कर ही रहँगा।"

इसके बाद उस व्यक्ति ने शराब को अलविदा कह दिया।

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