drishtant sangrah in hindi -चिकित्सक का धर्म
जीवन के संबंध में डॉक्टरों को भगवान के बाद का दर्जा दिया जाता है। उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे बीमार का इलाज जात-पांत, वर्ण और आर्थिक स्थिति जैसी बातों से हटकर करेंगे।
चिकित्सक के इस कर्तव्य को निभाने का उदाहरण हमें रामायण में मिलता है।
लंका में राम-रावण युद्ध चल रहा था। एक दिन शक्ति बाण चलाकर, रावण के पत्र मेघनाद ने लक्ष्मण को मूर्च्छित कर दिया। राम के खेमे में शोक छा गया।
राम के लिए यह घटना बड़ी दुखदायी थी। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या किया जाये? तभी विभीषण ने राम को बताया कि लंका में सुषेण नामक वैद्य रहता है।
drishtant sangrah in hindi -चिकित्सक का धर्म
वह यदि किसी प्रकार यहाँ आ सके तो लक्ष्मण की मूच्र्छा दूर हो जायेगी। राम ने यह काम हनुमान जी को सौंप दिया। हनुमान लंका में गये और सुषेण को उसके घर समेत उठा लाये।
जब सुषेण को स्थिति से अवगत कराया गया तो उसने रावण की परवाह नहीं की थी। क्योंकि वह जानता था कि चिकित्सक का क्या कर्तव्य है।
उसे केवल चिकित्सा करनी है। वैद्य ने इस बात को महत्व नहीं दिया कि मैं रावण पक्ष का हूँ और रोगी रावण के प्रतिद्वन्द्वी का भाई है।
हालांकि वह यह भी जानता था कि यह बात जब रावण को ज्ञात हो जायेगी तो रावण उसे बिना मारे नहीं छोड़ेगा।
dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर
उसने तत्परता के साथ अपना कर्तव्य निभाया और कहा-“लक्ष्मण को केवल संजीवनी बूटी देकर ही बचाया जा सकता है।
वह भी तब जब कि वह प्रातःकाल होने से पूर्व ही उन्हें दे दी जाये। यह भा बताया कि वह बूटी हिमालय पर्वत पर मिलेगी।
इसके बाद हनुमान जी हिमालय पर्वत पर गये और बूटी की पहचान न होने के कारण पूरे पर्वत को ही उठा लाये।
जब तक हनुमान जी लौटकर नहीं आ गये सुषेण राम के खेमे में ही उपस्थित रहा। जब हनुमान जी लौट आये तो संजीवनी बटी लक्ष्मण को सुषेण ने स्वयं अपने हाथों से दी।
वैद्य ने कुछ और नहीं, बल्कि एक चिकित्सक का धर्म निभाया था। आज के डॉक्टरों और वैद्यों को वैद्य सुषेण से शिक्षा एवं प्रेरणा लेनी चाहिए जिसने हर कीमत पर अपने कर्तव्य को निभाया, जो सही था, जो समय की माँग थी, वह नहीं जो स्वार्थपूर्ति से युक्त एवं सुविधाजनक था।
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