dharmik kahaniyan -धरती पर ही स्वर्ग

 dharmik kahaniyan -धरती पर ही स्वर्ग

dharmik kahaniyan -धरती पर ही स्वर्ग


देवराज इन्द्र का दरबार जमा हुआ था। अनेक प्रकार की चर्चाएँ चल रही थीं। होते-होते इस बात की भी चर्चा होने लगी कि इस समय धरती पर सबसे श्रेष्ठ मुनि कौन है?


सभी सभासद इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए मन ही मन पृथ्वी पर घूमने लगे। फिर उन सबने एकमत होकर देवराज इन्द्र को उत्तर दिया-“महाराज! गणेश के प्रिय भक्त मुद्गल से श्रेष्ठ मुनि पृथ्वी पर इस समय नहीं है।"


देवराज प्रसन्नता से कहने लगे-“आप लोगों ने ठीक कहा। मैं स्वयं भी उनकी पूजा और भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ। मेरे हृदय में यह इच्छा बलवती हो रही है कि हम लोग उनको स्वर्ग में लाकर उनका सम्मान करें।"

 dharmik kahaniyan -धरती पर ही स्वर्ग


देवर्षि नारद भी वहीं बैठे थे। इन्द्र की बात सुनकर उन्होंने कहा-“राजन्! आप तो उन्हें स्वर्ग में लाना चाहते हैं, पर क्या वे स्वर्ग में आने के लिए तैयार हो जायेंगे?"


वहाँ उपस्थित सभी देव सभासद नारद जी की बात सुनकर एक साथ बोल उठे-“आप क्या कह रहे हैं नारद! स्वर्ग प्राप्त करने के लिए तो न जाने कितने ऋषि-मुनि हजारों वर्ष तक तपस्या किया करते हैं, फिर भी उन्हें स्वर्ग आने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता।"


• नारद जी ने पुन: कहा-“मुझे पूर्ण विश्वास है कि ऋषि मुद्गल अपने कर्तव्य का पालन करना छोड़कर स्वर्ग में आना नहीं चाहेंगे।"


नारद जी का कथन सुना तो देवराज इन्द्र ने अपने दो दूतों को महर्षि मुद्गल के पास भेजा। महर्षि के पास जाकर दोनों दूतों ने विनयपूर्वक महर्षि मुद्गल से कहा-“ब्रह्मर्षे! हम देवराज इन्द्र के दूत हैं।


वे आपकी भक्ति से अत्यन्त प्रसन्न हैं। उनकी इच्छा है कि आप यहाँ से स्वर्ग में जाकर रहें। अतः हम आपको ले जाने के लिए आये हैं।"

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


ऋषि मुद्गल सहज स्वभाव से बोले-“देवदूतो! आप जाकर देवराज इन्द्र से मेरी ओर से कहना कि मुझे स्वर्ग में रहने की इच्छा नहीं है।"


ऋषि का दो टूक उत्तर सुन देवदूत आश्चर्य में पड़ गये। कहने लगे-“मुनिवर! इस संसार का हर मानव स्वर्ग में जाने की लालसा करता + फिर आप स्वर्ग क्यों नहीं जाना चाहते?"


इस पर महर्षि ने उत्तर में कहा-“देवदतो! स्वर्ग और नरक तो धरती पर भी हैं। जो लोग पापी हैं उनके लिए तो सब जगह नरक ही नरक है और जो लोग धार्मिक हैं, पापों से दूर रहते हैं, उन्हें तो धरती पर भी स्वर्ग का आनन्द मिलता है।


फिर मातृभूमि से श्रेष्ठ स्थान और कहाँ हो सकता है? मझे तो अपनी मातृभूमि ही सबसे प्यारी है। मेरे लिए तो यह स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है।"

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