बोद्धार मत्सरग्रस्ताः/bodhar matsar grastah shloka niti
बोद्धार मत्सरग्रस्ताः प्रभवः स्मयदूषिताः।
अबोधोपहताश्चान्ये जीर्णमले सुभाषितम्॥२॥
विद्वान् ईर्ष्या से ग्रस्त हैं, प्रभु (धनी) गर्व से दूषित हैं, इन दोनों के अतिरिक्त बाकी बचे लोग अज्ञान में डूबे हैं, इस कारण कवियों की बहुमूल्य उक्तियाँ उनके मन की मन ही में रह जाती हैं, उनको कोई समझ नहीं पाता।