न संसारोत्पन्नं /na sansarotpannam shloka niti
न संसारोत्पन्नं चरितमनुपश्यामि कुशलं।
विपाकः पुण्यानां जनयति भयं मे विमृशतः।
महद्भिः पुण्योपैश्चिरपरिगृहीताश्च विषया
महान्तो जायन्ते व्यसनमिव दातुं विषयिणाम्॥३॥
संसार के चरित्रों को देखते हैं तो उनमें कल्याण नहीं दिखाई देता, विचार करने पर पवित्र कर्मों का फल भी भय ही उत्पन्न करता है। चिर संचित पुण्य समूहों द्वारा प्राप्त विषय भी विषयी पुरुषों के लिए दुःखदायी ही होते हैं।