चला विभूतिः क्षण /chala vibhutih kshanah shloka vairagya
चला विभूतिः क्षणभंगि यौवनं कृतान्तदन्तान्तरवर्ति जीवितम् ।
तथाप्यवज्ञा परलोकसाधने नृणामहो विस्मयकारि चेष्टितम्॥९९॥
ऐश्वर्य चंचल है, यौवन क्षणिक है, मनुष्य जीवन यम के दाँतों के मध्य में है, फिर भी मनुष्यमात्र परलोक प्राप्ति के साधन में उपेक्षा करता जा रहा है, अहो ! मनुष्य का यह व्यापार कितना आश्चर्यकारी है।