चाण्डालः किमयं /chandala kimayam shloka vairagya
चाण्डालः किमयं द्विजातिरथवा शूद्रोऽथ किं तापसः
किंवा तत्वविवेकपेशलमतिर्योगीश्वरा कोऽपि किम्।
इत्युत्पन्नविकल्प जल्पमुखरैः सम्भाष्यमाणा जनै
नक्रुद्धा:पथिनैव तुष्टमनसो यान्ति स्वयं योगिनः॥५१॥
क्या यह चाण्डाल है अथवा ब्राह्मण है, शूद्र है किंवा तपस्वी है? अथवा तत्त्वज्ञान में चतुर कोई योगीश्वर हैं? इस तरह अनेक प्रकार के संशय से पूर्ण तर्क-वितर्क द्वारा मार्ग में छेड़छाड़ किये जाने पर भी न तो चाण्डाल कहने पर क्रुद्ध हुए, न तो ब्राह्मण कहने पर प्रसन्न हुए योगी बिना उत्तर दिए चुपचाप चलते ही जाते हैं। ब्रह्मनिष्ठ योगी न तो प्रिय वस्तु प्राप्त कर प्रसन्न होते हैं, न अप्रिय वस्तु से अप्रसन्न ही होते हैं।