F विरमत बुधाः /virmata bidhah shloka vairagya - bhagwat kathanak
विरमत बुधाः /virmata bidhah shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

विरमत बुधाः /virmata bidhah shloka vairagya

विरमत बुधाः /virmata bidhah shloka vairagya

 विरमत बुधाः /virmata bidhah shloka vairagya

विरमत बुधाः /virmata bidhah shloka vairagya


विरमत बुधाः योषित्सङ्गात्सुखात्क्षणभंगुरात्कुरुत

करुणामैत्रीप्रज्ञावधूजनसंगमम्

न खलु नरके हाराक्रान्तं घनस्तनमण्डलं

शरणमथवा श्रोणीबिम्बं रणन्मणिमेखलम्॥५२॥

हे विद्वानों! क्षणमात्र के लिए सुख देने वाले स्त्री समागम से अपने मन को हटा लो। करुणा (दुःखियों में दया करना) मैत्री (पुण्यवानों में मैत्री) और प्रज्ञारूपी स्त्रियों से संगम करो। क्योंकि अन्त में नरक में जाने पर मुक्ताहार से सुशोभित पुष्ट स्तनमण्डल अथवा शब्दायमान मणिमेखला (करधनी) वाला नितम्बमण्डल रक्षा नहीं कर सकेगा।

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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