dharmik kahaniyan pdf -संतोष का पुरस्कार
भारत में एक दानी मुस्लिम शासक था। नाम था आसफउद्दौला। दान देने में उसकी इतनी रुचि थी कि जो भी उसके सामने हाथ फैलाता, वह उसकी झोली भर देता था।
एक दिन एक फकीर उसके आवास के पास यह गाता हआ आया "जिसे न दे मौला, उसे दे आसफउद्दौला।" सनकर बादशाह खुश हो उठा।
फकीर को बुलवाकर उसे एक तरबूज दिया। फकीर ने तरबज को तो ले लिया पर उसके चेहरे पर संतोष की मुस्कान नहीं उभरी। वह दुखी था। वह सोच रहा था-तरबूज तो कहीं भी मिल सकता है। बादशाह के यहाँ से तो कोई कीमती चीज मिलनी चाहिए थी।
dharmik kahaniyan pdf -संतोष का पुरस्कार
थोड़ी देर बाद एक दूसरा फकीर बादशाह के पास से गाता हुआ जा रहा था। वह गा रहा था
मौला दिलवाए तो मिल जाए।
मौला दिलवाए तो मिल जाए। आसफउद्दौला को उसका यह गाना अँचा नहीं। बड़े बेमन से फकीर को उसने दो आने दे दिये। फकीर ने दो आने लिये और मस्ती के साथ चल दिया।
दोनों फकीरों की रास्ते में मलाकात हो गई। दोनों ने आपस में पूछा कि बादशाह ने क्या दिया? पहले फकीर ने निराशा-भरे लहजे में कहा-“बस, यह तरबूज दिया है। दूसरे ने प्रसन्नतापूर्वक कहा-“मुझे दो आने मिले हैं।"
पहला फकीर बोला-“तुम तो फायदे में हो।” दूसरा बोला-"जो मौला ने दे दिया, ठीक है।"
पहले फकीर ने अपना तरबूज दो आने में दूसरे फकीर को बेच दिया। वह तरबूज लेकर बहुत खुश हुआ। खुशी-खुशी अपने ठिकाने पर पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर उसने तरबूज फाड़ा तो आश्चर्य से उसकी आँखें फटी की फटी रह गई। तरबज में हीरे-जवाहरात भरे थे।
dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर
कुछ दिन बाद पहला फकीर फिर आसफउद्दौला से कुछ माँगने गया। बादशाह ने उस फकीर को पहचानकर कहा-“तुम अब भी भीख माँगते हो!
उस दिन मैंने तरबूज दिया था, उसका क्या किया?"
“मैंने उसे दो आने में एक फकीर को बेच दिया था।" फकीर ने उत्तर में कहा।
बादशाह ने थोड़ा अप्रसन्न-सा होते हुए कहा-“तुम्हारी यही तो कमजोरी है कि तुम्हारे पास संतोष नहीं है।
अगर तुमने संतोष से काम लिया होता तो तुम्हें वह सब कुछ मिल गया होता जो तुम सोच भी नहीं सकते थे। लेकिन तुम्हें तरबूज से संतोष नहीं हुआ। तुम कुछ और की कल्पना करने लगे और तुम्हारे बाद एक फकीर यहाँ आया था वह संतोषी था, अतः उसे संतोष का पुरस्कार मिल गया।
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