F दुराराध्याश्चामी /duraradhya chami shloka vairagya - bhagwat kathanak
दुराराध्याश्चामी /duraradhya chami shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

दुराराध्याश्चामी /duraradhya chami shloka vairagya

दुराराध्याश्चामी /duraradhya chami shloka vairagya

 दुराराध्याश्चामी /duraradhya chami shloka vairagya

दुराराध्याश्चामी /duraradhya chami shloka vairagya


दुराराध्याश्चामी तुरगचलचिताः क्षितिभुजो

वयं तु स्थूलेच्छा महति च पदे बद्धमनसः।

जरा देहं मृत्युर्हरति दयितं जीवितमिदं

सखे नान्यच्छ्रेयो जगतिविदुषोऽन्यत्र तपसः॥४८॥

घोड़ों के समान चंचल चित्त वाले राजाओं की आराधना करना कठिन काम नहीं है, परन्तु हमारी इच्छाएँ बड़ी हैं और ऊँचे से ऊँचे पदों की प्राप्ति में सदा लालसा लगी रहा करती है, वृद्धावस्था शरीर का नाश करती है और मृत्यु प्रिय प्राण का हरण करती है। इसलिए, हे मित्र! इस संसार में विवेकी पुरुष के लिए तप को छोड़कर और दूसरा मार्ग कल्याणकारी नहीं है।

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 दुराराध्याश्चामी /duraradhya chami shloka vairagya

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