F गङ्गातीरे हिमगिरि /ganga tire shloka vairagya - bhagwat kathanak
गङ्गातीरे हिमगिरि /ganga tire shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

गङ्गातीरे हिमगिरि /ganga tire shloka vairagya

गङ्गातीरे हिमगिरि /ganga tire shloka vairagya

 गङ्गातीरे हिमगिरि /ganga tire shloka vairagya

गङ्गातीरे हिमगिरि /ganga tire shloka vairagya


गङ्गातीरे हिमगिरिशिलाबद्धपद्मासनस्य।

ब्रह्मध्यानाभ्यसनाविधिना योगनिद्रां गतस्य

किं तैर्भाव्यं मम सुदिवसैर्यत्रते निर्विशङ्काः

कण्डूयन्ते जरठहरिणाः स्वाङ्गमङ्गे मदीये॥३८॥

क्या मेरे वे अच्छे दिन आवेंगे जब मैं गंगा के तट पर हिमालय पर्वत की चट्टान पर पद्मासन लगाकर बैठा रहूँ? और उस समय निर्भय होकर बूढ़े हरिण अपनी खुजलाहट मिटाने के लिए हमारे शरीर में अपने शरीर को रगड़ने के लिए आया करें।

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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 गङ्गातीरे हिमगिरि /ganga tire shloka vairagya

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