हिंसाशून्यमयत्न /hinsa shunya mayatna shloka vairagya
हिंसाशून्यमयत्नलभ्यशमनं धात्रा मरुत्कल्पितं
व्यालानां, पशवस्तृणांकुरभुजः स्तुष्टाः स्थलीशायिनः।
संसारार्णेवलंघनक्षमधियां वृत्तिः कृता सा नृणां
यामन्वेषयतां प्रायान्ति सततं सर्वे समाप्तिं गुणाः॥१०॥
सृष्टिकर्ता विधाता ने हिंसारहित और बिना प्रयत्न से मिलने वाली वायु को सर्पो का भोजन बनाया, तृणों के अंकुरों को पशुओं का भोजन बनाया और संसाररूपी समुद्र को पार करने में समर्थ मनुष्यों की वह वृत्ति बनाई जिसकी खोज में उनके सारे गुण समाप्तप्राय हो जाते हैं।