F जीर्णा एव मनोरथा: /jirna ava manoratha shloka vairagya - bhagwat kathanak
जीर्णा एव मनोरथा: /jirna ava manoratha shloka vairagya

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जीर्णा एव मनोरथा: /jirna ava manoratha shloka vairagya

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जीर्णा एव मनोरथा: /jirna ava manoratha shloka vairagya


जीर्णा एव मनोरथा: स्वहृदये यातं जरा यौवनं

हन्तांगेषु गुणाश्च वन्थ्यफलतां याता गुणज्ञैर्विनां।

किं युक्तं सहसाभ्युपैति बलवान्कालः कृतान्तोऽक्षमी

हाज्ञातं मदनांतकोघ्रियुगलं मुक्त्वास्तिनान्योगतिः॥७८॥

मनोरथ हृदय के हृदय ही में जीर्ण-शीर्ण हो गये, जवानी वृद्धावस्था में परिणत हो गई, गुणज्ञों के न रहने से सारे गुण अंग में ही निष्फल हो गये, अब क्षमा न करने वाला बलवान् यम आ रहा है, इस अवस्था में क्या करना चाहिए? अब तो भगवान् शंकर के चरण युगल को छोड़कर और कोई दूसरी गति नहीं है।

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 जीर्णा एव मनोरथा: /jirna ava manoratha shloka vairagya

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