स्नात्वागांगैः पयोभिः /snatva gangaih shloka vairagya
स्नात्वागांगैः पयोभिः शुचिकुसुमगलैरर्ययित्वाविभोत्वां
ध्येये ध्यानं नियोज्य क्षितिधरकुहरग्राबपर्यङ्कमूले।
आत्मारामः फलाशी गुरुवचनरतस्त्वत्प्रसादात्स्मरारे।
दुःखान्मोक्ष्येकदाहंतवचरणारतो ध्यानमार्गेकनिष्ठः॥७९॥
हे स्मरारे ! गंगाजल से स्नान कर, हे विभो! पवित्र फूलों और फलों से आपकी पूजा कर पर्वत की कन्दरा की चट्टानरूपी शय्या पर बैठे ध्यान करने योग्य आप में अपने-आप को लीनकर केवल फलाहार करता हुआ गुरुओं के बताये मार्ग का अनुसरण करने वाला ध्यानमार्ग का पथिक मैं आपकी कृपा से आपके चरणों में अनुराग रखकर इस भवसागर से कब मुक्त होऊँगा।