F स्नात्वागांगैः पयोभिः /snatva gangaih shloka vairagya - bhagwat kathanak
स्नात्वागांगैः पयोभिः /snatva gangaih shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

स्नात्वागांगैः पयोभिः /snatva gangaih shloka vairagya

स्नात्वागांगैः पयोभिः /snatva gangaih shloka vairagya

 स्नात्वागांगैः पयोभिः /snatva gangaih shloka vairagya

स्नात्वागांगैः पयोभिः /snatva gangaih shloka vairagya


स्नात्वागांगैः पयोभिः शुचिकुसुमगलैरर्ययित्वाविभोत्वां

ध्येये ध्यानं नियोज्य क्षितिधरकुहरग्राबपर्यङ्कमूले।

आत्मारामः फलाशी गुरुवचनरतस्त्वत्प्रसादात्स्मरारे।

दुःखान्मोक्ष्येकदाहंतवचरणारतो ध्यानमार्गेकनिष्ठः॥७९॥

हे स्मरारे ! गंगाजल से स्नान कर, हे विभो! पवित्र फूलों और फलों से आपकी पूजा कर पर्वत की कन्दरा की चट्टानरूपी शय्या पर बैठे ध्यान करने योग्य आप में अपने-आप को लीनकर केवल फलाहार करता हुआ गुरुओं के बताये मार्ग का अनुसरण करने वाला ध्यानमार्ग का पथिक मैं आपकी कृपा से आपके चरणों में अनुराग रखकर इस भवसागर से कब मुक्त होऊँगा।

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
 -click-Vairagya satak shloka list 

 स्नात्वागांगैः पयोभिः /snatva gangaih shloka vairagya

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3