F क्षान्तं न क्षमया /kshantam na chhamya shloka vairagya - bhagwat kathanak
क्षान्तं न क्षमया /kshantam na chhamya shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

क्षान्तं न क्षमया /kshantam na chhamya shloka vairagya

क्षान्तं न क्षमया /kshantam na chhamya shloka vairagya

 क्षान्तं न क्षमया /kshantam na chhamya shloka vairagya

क्षान्तं न क्षमया /kshantam na chhamya shloka vairagya


क्षान्तं न क्षमया गृहोचितसुखं त्यक्तं न सन्तोषतः

सोढा दुःसहशीततातपवनक्लेशा न तप्तं तपः।

ध्यातं वित्तमहर्निशं नियमित प्राणैर्न शम्भोः

पदं तत्तत्कर्मकृतं यदैव मुनिभिस्तैस्तैः फलैर्वञ्चितम्॥१३॥

हमने सहन किया पर क्षमा से नहीं किन्तु असमर्थता से, गृहस्थ सुख को त्यागा तो सही पर सन्तोष से नहीं, अपितु दरिद्रता के कारण, भले ही शीत, वात और तपन के कष्ट को सहा, पर तप के कष्ट को न सहा, ध्यान तो किया पर धन का किया, प्राणायाम द्वारा शंकर भगवान् के चरणों का नहीं किया, इस तरह मैंने वही कर्म किये जो मुनियों ने किया था परन्तु उनका फल हमें मुनियों के जैसा नहीं मिला।

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