लोभात्क्रोधः प्रभवति /lobhatkrodhah prabhvati shloka niti

 लोभात्क्रोधः प्रभवति /lobhatkrodhah prabhvati shloka niti

लोभात्क्रोधः प्रभवति /lobhatkrodhah prabhvati shloka niti

लोभात्क्रोधः प्रभवति लोभात्कामः प्रजायते।

लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम् ।।१०।।


प्रसंग :- लोभस्य पतनमूलतां निर्वक्तिअन्वयः- लोभात् क्रोधः प्रभवति, लोभात् कामः प्रजायते, लोभात् मोहःनाश: च भवति, लोभः पापस्य कारणम् (अस्ति) ।।१०।।


व्याख्या-लोभात् = निरन्तरधनप्राप्तिविषयकाभिलाषवशात क्रोधः = कोपः प्रभवति = उत्पद्यते, लोभात् कामः = विषयवासना प्रजायते, च लोभात मोहः = सदसद्विवेकात्मिकाया बुद्धेर्नाशः, मुत्युश्च भवति । किमन्यत्, लोभ एव पापस्य सर्वविधानिष्टस्य कारणमस्ति ।।१०।।


भाषा-- क्योंकि, लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है, लोभ से विषय भोग आदि कामों में प्रवृति होती है, लोभ से ही मोह और कर्तव्याकर्तव्यरूप बुद्धि का नाश होता है, इसलिए लोभ ही सब पापों का कारण है।।१०।।

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  1. अर्थात् लोभ से क्रोध का भाव उपजता है, लोभ से कामना या इच्छा जागृत होती है, लोभ से ही व्यक्ति मोहित हो जाता है, यानी विवेक खो बैठता है, और वही व्यक्ति के नाश का कारण बनता है । वस्तुतः लोभ समस्त पाप का कारण है ।

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