न गणस्याग्रतो गच्छे /na ganasyagrato gachhe shloka niti

 न गणस्याग्रतो गच्छे /na ganasyagrato gachhe shloka niti

न गणस्याग्रतो गच्छे /na ganasyagrato gachhe shloka niti

न गणस्याग्रतो गच्छेत्सिद्ध कार्ये समं फलम्।

यदि कार्यविपत्तिः स्यान्मुखरस्तत्र हन्यते ।।१२।।


प्रसंग:- नेतृत्वं सर्वत्र शुभकरं न भवतीति प्रतिपादयति


अन्वय- (कश्चित) गणस्य अग्रतः न गच्छेत कार्ये सिद्धे फलं समम (भवति) यदि तत्र कार्यविपत्तिः स्यात (सर्वैः) मुखर: हन्यते ।।१२।

व्याख्या- गणस्य-समूहस्य अग्रतः पुरः अग्रेसरो भूत्वेत्यर्थः न गच्छेत्, यतः कार्य सिद्धे सति, फलं-लाभः सम-तल्यम भवति, यदि तत्र कायविपत्तिः कार्य हानिः स्यात तदा मुखर:-प्रवर्तकः अग्रेसर इत्यर्थःहन्यते तिरस्क्रियते।।१२।।


भाषा- समूह का अग्रणी नहीं बनना चाहिये क्योंकि कार्य सफल हो जाते पर सभी को बराबर लाभ होता है और यदि कार्य बिगड़ता है तो अग्रणी माग जाता है।।१२।।

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 न गणस्याग्रतो गच्छे /na ganasyagrato gachhe shloka niti

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