महादेवो देवः /mahadevo deva shloka vairagya
महादेवो देवः सरिदपि च सैषा सुरसरिद्
गुहा एवागारं वसनमपि ता एव हरितः।
सुहृद्वा कालोऽयं व्रतमिदमदैन्यव्रतमिदं
कियद्वा वक्ष्यामी वटविटप एवास्तु दयिता॥४०॥
महादेव ही मेरे एकमात्र आराध्य देव हैं, गंगा ही एकमात्र नदी हैं; पर्वतीय कन्दरा ही घर हैं, दिशायें ही वस्त्र हैं, काल ही मित्र है, किसी के सामने दीन न होना यह एकमात्र व्रत है, कहाँ तक कहें वट वृक्ष ही दयिता है। तात्पर्य यह कि विरक्त पुरुष की जीवनयात्रा के लिए ये ही पदार्थ पर्याप्त हैं।