F महादेवो देवः /mahadevo deva shloka vairagya - bhagwat kathanak
महादेवो देवः /mahadevo deva shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

महादेवो देवः /mahadevo deva shloka vairagya

महादेवो देवः /mahadevo deva shloka vairagya

 महादेवो देवः /mahadevo deva shloka vairagya

महादेवो देवः /mahadevo deva shloka vairagya


महादेवो देवः सरिदपि च सैषा सुरसरिद्

गुहा एवागारं वसनमपि ता एव हरितः।

सुहृद्वा कालोऽयं व्रतमिदमदैन्यव्रतमिदं

कियद्वा वक्ष्यामी वटविटप एवास्तु दयिता॥४०॥

महादेव ही मेरे एकमात्र आराध्य देव हैं, गंगा ही एकमात्र नदी हैं; पर्वतीय कन्दरा ही घर हैं, दिशायें ही वस्त्र हैं, काल ही मित्र है, किसी के सामने दीन न होना यह एकमात्र व्रत है, कहाँ तक कहें वट वृक्ष ही दयिता है। तात्पर्य यह कि विरक्त पुरुष की जीवनयात्रा के लिए ये ही पदार्थ पर्याप्त हैं।

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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 महादेवो देवः /mahadevo deva shloka vairagya

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