मानेम्लायिनिखण्डिते /manemla yini khandite shloka vairagya
मानेम्लायिनिखण्डितेचवसुसुनिव्यर्थप्रायतेऽ तिथिनि
क्षीणे बन्धुजने गतेपरिजने नेष्टे शनैयौवने।
युक्तं केवलमेतदेव सुधियां यञ्जह्न कन्यापयः
पूर्तग्रावगिरीन्द्रकन्दरतटोकुञ्ज निवासः क्वचित्॥३०॥
सम्मान के क्षीण होने पर, धन के नष्ट हो जाने पर; अतिथियों के विमुख चले जाने पर, बन्धुवर्ग के नाश हो जाने पर, परिजनों के चले जाने पर और धीरे-धीरे युवावस्था के भी ढल जाने पर बुद्धिमान पुरुष का यही कर्त्तव्य है कि वह भी जाह्नवी के जल कणों से पवित्र हिमालय पर्वत की किन्हीं गुफाओं में वास करे।