मातर्मेदिनि तात /matarmedini tat shloka vairagya
मातर्मेदिनि तात मारुतः सखे तेजः सुबन्धो जल
भ्रातम निबद्ध एष भवतामन्त्यः प्रणामाञ्जलिः।
युष्मत्सङ्गवशोपजातसुकृतोद्रकस्फुर निर्मल
ज्ञानापास्तसमस्त मोहमहिमांलिने परब्रह्मणि॥७४॥
हे माता पृथ्वी! हे पिता वायु! मित्र तेज! हे सुबन्धु जल! और हे भाई आकाश! यह मैं हाथ जोड़कर आपके आगे प्रणाम करता हूँ आपकी संगति के कारण उत्पन्न पुण्य की अधिकता से प्रकाशमान ज्ञान द्वारा मोह महिमा को नष्ट कर आप में परब्रह्म परमात्मा में लीन होने जा रहा हूँ।