यावत्स्वथमिदं /yavat svastha midam shloka vairagya
यावत्स्वथमिदं कलेवरगृह यावच्च दूरे जरा
यावच्चेन्द्रियशक्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुषः।
आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्यः प्रयत्नो महान्
प्रोद्दीप्ते भवने च कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः॥७५॥
जब तक यह शरीर स्वस्थ और निरोग है जब तक इन्द्रियाँ अपने-अपने कामों में समर्थ हैं और जब तक आयुष्य का नाश नहीं होता तभी तक अपने कल्याण के निमित्त विद्वान को प्रयत्न करना चाहिए। घर में आग लग जाने पर कुँआ खोदने का प्रयत्न करना व्यर्थ है।