Prerak kahaniyan /शत्रु की पहचान
सूफी सन्तों में महिला सूफी सन्त राबिया का नाम बहुत प्रसिद्ध है। एक बार वह कहीं जा रही थीं। मार्ग जंगल में होकर था।
जब वह उस जंगल में पहुँची तो उन्होंने देखा कि रास्ते के साथ ही एक सुन्दर तालाब है। तालाब के चारों ओर हरियाली है। वहीं उन्होंने पक्षियों के चहचाहने का स्वर भी सुना।
उनकी इच्छा हुई कि तालाब के किनारे हरियाली में बैठकर पक्षियों का कलरव सुनें और वह वहाँ बैठ गईं।
राबिया के बैठते ही कई पक्षी आकर उनके सिर और कंधों पर बैठ गये। जिन्हें सिर और कंधों पर जगह नहीं मिली वे उनके पैरों के आस-पास फुदकने लगे।
Prerak kahaniyan /शत्रु की पहचान
राबिया उन सब पर स्नेह से हाथ फेरने लगीं। हाथ फेरते-फेरते ही कहने लगीं-“अभी तुमने दाने तो नहीं चुगे होंगे, मैं तुम्हें दाने खिलाती हूँ।"
यह कहकर उन्होंने अपने झोले में से अनाज निकाला और प्रेम से पक्षियों को खिलाना आरम्भ कर दिया। इस काम में वे पूरी तरह पक्षियों के साथ खो गईं। उन्हें उधर-इधर का कुछ भी ध्यान नहीं रहा।
संयोगवश पास के गाँव के दो-चार लोग उस रास्ते से गुजर रहे थे। उन्होंने जो यह अनोखा दृश्य देखा तो हैरान रह गये! गाँव में पहुँचे तो अन्य लोगों से भी इस बात की चर्चा की।
राबिया के इस अद्भुत पक्षी-प्रेम का यह समाचार पास के गाँव में रहने वाले एक फकीर ने भी सुना। फकीर का नाम था-हसन बसरी। वह सोच में पड़ गये।
dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर
उन्होंने सोचा-क्यों न मैं राबिया के पास जाकर इस रहस्य को जान लूँ। अत: वह उस स्थान के लिए चल पड़े जहाँ राबिया पक्षियों के प्रेम में उनके साथ आनन्द मना रही थीं।
हसन बसरी जैसे ही राबिया के पास पहुँचे, सब-के-सब पक्षी एक-एक कर वहाँ से उड़ गये। हसन बसरी ने कहा-“राबिया!
मैं बड़ी उत्कट इच्छा से तुम्हारे पास इस अद्भुत दृश्य का आनन्द लेने आया था, ताकि वे पक्षी मेरे जिस्म पर भी खेलें। लगता है, शायद तुम्हें मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लगा।"
राबिया ने फकीर से पूछा-“पहले यह बताओ कि तुम खाते क्या हो?" बसरी ने उत्तर दिया-“मैं गाँव में रहता हूँ। अतः वहाँ बकरे आदि का माँस तो नहीं खा सकता, हाँ, पक्षियों का माँस खा लेता हूँ।"
_फकीर की बात पूरी होने से पहले ही राबिया बोल उठीं-"बस, बस, आप आगे न बोलो। देखो, पक्षी बे जुबान जरूर हैं, मगर वे तुम्हारी आहट को पहचानते हैं।
खुदा की दुनिया का हर जानदार प्राणी अपने को हानि पहुँचाने वाले को बहुत अच्छी तरह जानता है। तुम्हारे. आने की आहट सुनकर ही सब पक्षी उड़-उड़कर अपने-अपने घोंसलों में जा बैठे हैं।
तुम्हारा आना मेरे लिए तो अशुभ नहीं था, अत: मुझे गवारा भी था; पर पक्षियों को तुम्हारा यहाँ आना गवारा नहीं था क्योंकि वे तुम्हारी करतूत से डरते भी हैं और तुम जैसों से घृणा भी करते हैं।"
राबिया की बात सुनकर बसरी शर्मिन्दा हो गये।