Prerak prasang /सुख क्या है?

 Prerak prasangसुख क्या है?

Prerak prasang / सुख क्या है?


एक अत्यन्त सद्विचारों वाले महात्मा भ्रमण करते हुए एक गाँव में पहुँचे। गाँव वालों ने उनको प्रणाम किया, चरण-वन्दना की और आदरपूर्वक एक आसन पर बिठा दिया।


महात्मा जी ने सबको आशीर्वाद दिया। फिर सबने उन्हें अपनी-अपनी समस्याएँ सुनाईं और महात्मा जी ने सबकी समस्याओं का समाधान किया।


इसके बाद उन्होंने वहीं रात्रि बिताने की इच्छा प्रकट की। इससे गाँव के सभी निवासी बड़े प्रसन्न हुए।


एक व्यक्ति उन्हें अपने घर ले गया। वहाँ जाकर वह बोला-"महात्मा जी! आज आपके चरणों की धूलि से मेरा घरे पवित्र हो गया; यह मेरे लिए अहोभाग्य की बात है। आज मैं धन्य हो गया।"

 Prerak prasang / सुख क्या है?


एक कमरे में महात्मा जी को ठहरा दिया। महात्मा जी कमरे के एक कौने में बैठकर प्रभु का स्मरण और आत्म-चिन्तन करने लगे। जब आधी रात बीत गई तो जमीन पर हाथ की कोहनी को मोड़कर तकिया बनाया और उस पर सिर रखकर सो गये।


उस गाँव के पास वाले गाँव में ही उस क्षेत्र का शासक रहता था। प्रातः काल होने पर राजा ने उन महात्मा के बारे में सुना तो अपने सैनिकों को आदेश दिया कि आदरपूर्वक उन महात्मा जी को मेरे महल में ले आओ।


सैनिक राजा के निर्देश के अनुसार उस गाँव में गये और आदरपूर्वक महात्मा जी को अपने साथ ले आये।

 Prerak prasang / सुख क्या है?


महात्मा जी को आते देखा तो राजा ने उठकर उनका स्वागत किया और कहा-“पधारिए महाराज, आपने बड़ी कृपा की जो मेरे घर पधारे।"


महात्मा जी बैठ गये तो राजा ने उनसे पछा-“कहिए महाराज, रात कैसी बीती थी?"

महात्मा जी ने उत्तर दिया-“आधी आप जैसी और आधी आपसे अच्छी।"


राजा कुछ समझ नहीं सका। उसने कहा-“महाराज, मैंने तो सुना है कि आप जमीन पर हाथ का तकिया लगाये सो रहे थे!


फिर भी आप कह रहे हैं कि आधी रात मुझ जैसी और आधी रात मझसे अच्छी बीती! मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ।"


महात्मा बोले-“राजन्! आधी रात के बाद मैं भी सोया और आप भी सोये। दोनों अलग-अलग स्थितियों में सोये। लेकिन नींद आ जाने के बाद जमीन और फूलों की सेज में क्या अन्तर रह जाता है?"

 dharmik drishtant / दृष्टान्त महासागर


राजा बोला- “यह बात तो आपकी ठीक है।"

महात्मा जी ने फिर कहा-“महाराज! आधी रात तक आप राज्य से संबंधित समस्याओं पर विचार करते रहे थे और मैं उस समय भगवान का स्मरण व आत्मचिन्तन कर रहा था।


आपने राज्य के अन्दर और चिन्ता में अपना समय बिताया जबकि मैंने शुद्ध भाव में। इसलिए मैंने कहा कि आधी रात तो आप जैसी बीती और आधी आपसे अच्छी।"


महात्मा की बात सुनकर राजा बड़ा प्रभावित हुआ और बोला-"आपके पास विशुद्ध आत्मचिन्तन हैं जो बहुत बड़ी संपत्ति है और साथ ही आपका सन्तोष रूपी धन पर भी पूर्ण अधिकार है।


इसलिए आप सुखी हैं और मैं इतनी धन-सम्पत्ति होते हुए भी अत्यन्त दुखी हूँ। अब मेरी समझ में यह आ गया कि सुख धन-सम्पत्ति में नहीं, आत्मचिन्तन और सन्तोष में है।"

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