F प्रियसख विपद्द /priyasakha vipadya shloka vairagya - bhagwat kathanak
प्रियसख विपद्द /priyasakha vipadya shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

प्रियसख विपद्द /priyasakha vipadya shloka vairagya

प्रियसख विपद्द /priyasakha vipadya shloka vairagya

 प्रियसख विपद्द /priyasakha vipadya shloka vairagya

प्रियसख विपद्द /priyasakha vipadya shloka vairagya


प्रियसख विपद्दण्डव्रातप्रतापपरम्परा

परिचयचले चिन्ताचक्रे निधाय विधिः खलः।

मृदमिव बलापिण्डीकृत्य प्रगल्भकुलालवभ्रमयति

मनो नो जानीमः किमत्र विधास्यति॥८३॥

हे प्रिय मित्र! यह शठ विधाता, चतुर कुम्हार की तरह विपत्तिरूपी दण्ड के मार की परम्परा से अत्यन्त चंचल चिन्तारूपी चक्र पर मिट्टी के पिण्ड की तरह मेरे मन को घुमाता रहता है, हम नहीं जानते कि वह इससे क्या बनाना चाहता है।

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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 प्रियसख विपद्द /priyasakha vipadya shloka vairagya

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