F रम्यं हऱ्यातलं /ramyam havyatalam shloka vairagya - bhagwat kathanak
रम्यं हऱ्यातलं /ramyam havyatalam shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

रम्यं हऱ्यातलं /ramyam havyatalam shloka vairagya

रम्यं हऱ्यातलं /ramyam havyatalam shloka vairagya

 रम्यं हऱ्यातलं /ramyam havyatalam shloka vairagya

रम्यं हऱ्यातलं /ramyam havyatalam shloka vairagya


रम्यं हऱ्यातलं न किं वसयते श्रव्यं न गेयादिकं

किं वा प्राणसमासमागमसुखं नैवाधिकं प्रीयते।

किं तद्धान्तपतत्पतंगपवनव्यालोलदीपांकुर

च्छायाचञ्चलमाकलय्य सकलं सन्तो वनान्तं गता॥५५॥

क्या सन्त महात्माओं के रहने के लिए बड़े-बड़े राजाप्रसाद न थे? क्या उनके सुनने के लिए अच्छे-अच्छे संगीत न थे? क्या प्राण के समान अत्यन्त प्रिय स्त्रियों का समागम सुख उनको अधिक प्रीतिकर न था कि उन्होंने इस संसार को गिरते पतंग की हवा से हिली हुई दीपक की छाया के समान चंचल जानकर निर्जन बन में चला जाना ही श्रेयस्कर समझा।

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 रम्यं हऱ्यातलं /ramyam havyatalam shloka vairagya

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