यूयं वयं वयं /yuyam vayam shloka vairagya
यूयं वयं वयं यूयमित्यासीन्मतिरावयोः।
किं जातमधुना मित्र यूयं यूयं वयं वयम्॥५४॥
हे सखे! हम लोगों की पहले धारणा थी कि जो तुम हो वह हम हैं और जो हम हैं वह तुम हो, हम तुम दोनों एक ही हैं। परन्तु अब क्या हो गया मालूम नहीं कि तुम तुम ही रह गये और हम हम ही रह गये अर्थात् तुम विषयाभिलाषी हो और हम विरक्त हैं, अब तुम्हारे हमारे में पहले की तरह समानता नहीं रही।