स्फुरद्दापश्चन्द्रो /sfura dapaschandro shloka vairagya
स्फुरद्दापश्चन्द्रो विरतिवनितासंगमुदितः
महि रम्या शय्या विपुलपधानं भुजानं भुजलता
वितानं चाकाशं व्यजनमनुकूलोऽयमनिलः।
सुखं शान्तः शेते मुनिरतनुभूतिर्नू इव॥६६॥
वही शान्त मुनि, विशिष्ट ऐश्वर्यशाली राजा की तरह सुखपूर्वक सोया करता है, जिसकी उत्तम शय्या पृथ्वी पर है, भुजा ही बड़ा तकिया है, आकाश ही चन्दवा है, अनुकूल वायु ही पंखा है, चन्द्रमा ही प्रकाशमान दीपक है, और विरक्तिरूपी स्त्री के संग जो सदा प्रसन्न रहा करता है।